26 अगस्त को मेनका गांधी का जन्मदिन होता है. मेनका (Maneka Gandhi) की जिंदगी उतार-चढ़ाव भरी रही है. जानिये आखिर ऐसा क्यों इंदिरा गांधी ने उन्हें घर से जाने को कह दिया था.
दिल्ली के सिख परिवार में जन्मीं मेनका गांधी (Maneka gandhi) की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई लॉरेंस स्कूल से हुई. फिर उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन की और जेएनयू भी गईं. मेनका ने कॉलेज के बाद मॉडलिंग में हाथ आजमाया और यही उनकी गांधी फैमिली में एंट्री की वजह बना. इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय ने जब एक पत्रिका में मेनका की तस्वीर देखी तो पहली नजर में उनपर फिदा हो गए. संजय गांधी और मेनका की मुलाकात हुई. दोनों करीब आए और जुलाई 1974 में एंगेजमेंट कर ली. दो महीने बाद सितंबर 1974 में दोनों शादी के बंधन में बंध गए.
इंदिरा गांधी ने मेनका गांधी को क्यों घर से निकाला? आखिर उस रात सास-बहू के बीच क्या हुआ था; जानिये
इंदिरा गांधी ने मेनका गांधी को क्यों घर से निकाला? आखिर उस रात सास-बहू के बीच क्या हुआ था; जानिये
26 अगस्त को मेनका गांधी का जन्मदिन होता है. मेनका (Maneka Gandhi) की जिंदगी उतार-चढ़ाव भरी रही है. जानिये आखिर ऐसा क्यों इंदिरा गांधी ने उन्हें घर से जाने को कह दिया था.
दिल्ली के सिख परिवार में जन्मीं मेनका गांधी (Maneka gandhi) की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई लॉरेंस स्कूल से हुई. फिर उन्होंने लेडी श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन की और जेएनयू भी गईं. मेनका ने कॉलेज के बाद मॉडलिंग में हाथ आजमाया और यही उनकी गांधी फैमिली में एंट्री की वजह बना. इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय ने जब एक पत्रिका में मेनका की तस्वीर देखी तो पहली नजर में उनपर फिदा हो गए. संजय गांधी और मेनका की मुलाकात हुई. दोनों करीब आए और जुलाई 1974 में एंगेजमेंट कर ली. दो महीने बाद सितंबर 1974 में दोनों शादी के बंधन में बंध गए.
संजय गांधी (Sanjay Gandhi) और मेनका का साथ करीब 6 साल का रहा. जून 1980 में संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई. संजय के जाने से इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को गहरा धक्का लगा. उन्होंने संजय की जगह लेने के लिए अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को आगे किया. हालांकि कांग्रेस के तमाम नेता संजय की पत्नी मेनका गांधी को उनका वारिस मान रहे थे. खुद मेनका को भी लग रहा था कि अपने पति की विरासत की असली हकदार वही हैं.
लखनऊ की वो सभा
संजय गांधी के वफादार रहे तमाम कांग्रेसी नेता मेनका गांधी के पीछे खड़े थे और उन्हें समर्थन दे रहे थे. इसमें उत्तर प्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेता अकबर अहमद डंपी भी शामिल थे. मार्च 1982 में डंपी ने लखनऊ में एक सभा का आयोजन किया. जिसमें संजय गांधी की विरासत को याद किया जाना था. एक तरीके से इस सभा का मकसद शक्ति प्रदर्शन करना और यह जताना था कि संजय की विरासत की हकदार मेनका गांधी ही हैं. मेनका बाकायदे इस सभा में आने का न्योता भेजा गया.