नाम को लेकर पुणे में बर्गर की एक दुकान और इंटरनेशनल फास्टफूड चेन के बीच चली आ रही कानूनी लड़ाई में एक नया मोड़ आ गया है. इससे पहले निचली अदालत ने पुणे की दुकान के पक्ष में फैसला सुनाया था.
इसके बाद ये मामला बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच गया. कोर्ट ने कहा 6 सितंबर की सुनवाई होने तक पुणे वाली दुकान ‘बर्गर किंग’ का नाम इस्तेमाल होने पर रोक लगा दी गई.
इंटरनेशनल फास्ट-फूड चेन बर्गर किंग ने पुणे की निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. इसमें स्थानीय ईरानी दंपती के बिजनेस को ‘बर्गर किंग’ नाम का इस्तेमाल जारी रखने की परमिशन दी गई थी. लंबी लड़ाई के बाद पुणे कोर्ट ने दंपती के पक्ष में फैसला सुनाया था.
पुणे में ईरानी दंपती चला रहे रेस्तरां
ये लड़ाई आज की नहीं है, इस ट्रेडमार्क की लड़ाई साल 2011 से चलती आ रही है. अमेरिका की बर्गर किंग कॉर्प ने 2011 में मुकदमा दायर किया था. हालांकि जब पता चला कि पुणे की बर्गर ज्वाइंट इसी नाम का इस्तेमाल कर रहा है. इसका संचालन एक ईरानी दंपती कर रही हैं. वहीं बर्गर किंग ने इसपर तर्क दिया कि ऐसा करना उसके ट्रेडमार्क का उल्लंघन है और उसने कोर्ट से नाम के इस्तेमाल को रोकने और हर्जाना दिलाने के लिए किया था.
ईरानी दंपती ने क्या कहा
पुणे में दुकान चलाने वाले ईरानी दंपती ने कोर्ट में कहा कि वे अमेरिकी बर्गर किंग के भारत में एंट्री करने से काफी पहले यानी साल 1992 से ही ‘बर्गर किंग’ के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं. उनका इरादा किसी को गुमराह करने का नहीं था. उस समय भारत में बर्गर किंग को व्यापक तौर पर मान्यता नहीं मिली थी.
ईरानी दंपती ने कंपनी से 20 लाख रुपए का मुआवजा की भी मांग की थी. उनका दावा है कि बर्गर किंग की कानूनी कार्रवाइयों ने उनके व्यवसाय पर नकारत्मक असर डाला है.
पिछले फैसले पर क्या राहत मिली?
दोनों पक्षों की ओर से कई तर्क दिए गए. सभी दलीलों को ध्यान में रखते हुए निचली अदालत ने पाया कि किसी भी पक्ष ने हर्जाने के दावों के समर्थन में पर्याप्त सबूत नहीं दे पाए. लेकिन कोर्ट ने पाया कि पुणे के आउटलेट को नाम का उपयोग करने से रोकने के लिए बर्गर किंग की अपील में भी सबूतों की कमी के कारण स्वीकार नहीं की जा सकती है. इससे नाम पर हुआ फैसला ईरानी दंपती के पक्ष में गया.
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